Tuesday, February 15, 2011

ये आँखें कुछ बयान करती है

My first shot at poem writing..


ये आँखें कुछ बयान करती हैं
चहकती है मज़ाक करती है
बहकती है प्यार करती है
महकती है आहें भरती है
ये आँखें कुछ बयान करती है

बिन बोले बात करती है
मधुशाला का काम करती है
जादुई जाल बुनती है
नशीला सा समा चुनती है
ये आँखें कुछ बयान करती है


शरारती है बदतमीज़ी करती है
भोली है यूँ ही फिसलती है
तेज़ है शिकार करती है
पलकें झपका के इज़हार करती है
ये आँखें कुछ बयान करती है


मोती सी बूँदों का स्रोत बनती है
दुखी है चमक कायम रखती है

सिसकियाँ ले रोने लगती है
आँसू है अंजानी बनती है

ये आँखें कुछ बयान करती है

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